बीना रोज़ घर और ऑफिस का काम करते करते थक सी गई थी तो उसने सोचा आज क्यों न आधे दिन की छुट्टी ले लू। किसी कैफ़े में शांति से बैठकर कॉफ़ी पीते हुए कुछ पढ़ लूँगी ,घर पे तो वैसे भी सुकून नहीं मिलता। उसने अपने प्रिंसिपल को हाफ डे की एप्लीकेशन दी और वो मंज़ूर हो गयी।
बीना इतनी कुशल अध्यापिका और संचालक थी क़ि स्कूल में सभी उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे। वो स्कूल से छूट कर क्रॉसवर्ड बुक स्टोर चली गयी पास ही के चॉकलेट रूम से अपनी पसंद की कॉफ़ी ली और दुपहरी नाम की एक किताब ने उसका मन मोह लिया।
बड़ी सुन्दर किताब थी ,एक घंटा कब बीत गया उसे कुछ पता भी नहीं चला। उसकी नज़र घडी पर गयी तो चार बज चुके थे। उसने अपना मोबाइल निकाल कर घर पर फ़ोन करने का सोचा तो फ़ोन कहीं नहीं मिला। उसे याद आया कि वो मोबाइल तो स्कूल में ही भूल आयी है। तुरंत स्कूल भागी और मोबाइल लिया और भागते दौड़ते घर पहुंची तो देखा अजय घर आ चुका था और सर पकड़ कर सोफे पर ही लेटा था।
बीना ने उसके सर पर प्यार से हाथ रख कर पूछा –‘तुम ठीक तो हो’? वो आँख खुलते ही चीखने लगा – ‘ कहाँ थी तुम , बस अपनी मस्ती में मस्त रहो , मैंने कितने फ़ोन किये ,तुम्हारे स्कूल भी आया पर तुम हमेशा की तरह नदारद? इससे पहले कि बीना कुछ बोले, अचानक अजय ने उसे ज़ोर से एक थप्पड़ मारा। बीना के गाल में अजय की अंगूठी के हीरे मानो गड़ते चले गए। ये उसकी सगाई की अंगूठी ही तो थी, जिसे उसने अपनी दो साल की सेविंग्स से बनवाया था बड़े चाव से।
१० साल से यही तो चल रहा है, बीना कितनी भी कोशिश करे पर अजय को गुस्सा आते ही उसका हाथ उठ ही जाता था फिर चाहे गलती बीना की हो भी या नही। बीना पढ़ी लिखी होकर भी बच्चो का मुँह देखकर चुपचाप सह रही थी अगले दिन, उसने तैयार होकर चेहरा आईने में देखा तो कल की चोट का निशान गहरा था ,उसने कोरोना को दुआ देते हुए झटपट मास्क पहना और ऑफिस के लिए रवाना हो गयी।
आज इस मास्क ने फिर उसके आत्मसम्मान को बचा लिया था।